जागरण ब्यूरो, इलाहाबाद : यूपी बोर्ड की हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट की
परीक्षा की केंद्र निर्धारण नीति में सरकार ने फिलहाल कोई बदलाव नहीं किया
है। सूत्रों के अनुसार शनिवार को शासन स्तरीय बैठक में पुरानी नीति को ही
मंजूरी दे दी गई है। गत वर्ष अपनाई गई नीति में बीस प्रतिशत से कम
परीक्षाफल वाले विद्यालयों को केंद्र नहीं बनाया गया था। इस साल भी यूपी
बोर्ड उन्हें राहत देने के मूड में नहीं है।
2013 की परीक्षाओं के लिए उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा सचिव पार्थसारथी सेन की अध्यक्षता में शनिवार को परीक्षा केंद्रों के लिए नीति बनाने के लिए बैठक हुई। इसमें शिक्षा निदेशक वासुदेव यादव और माध्यमिक शिक्षा परिषद के सचिव उपेंद्र कुमार भी मौजूद थे। सूत्रों के अनुसार अधिकारियों ने गत वर्ष अपनाई गई नीति को जारी रखने पर सहमति जताई। सचिव ने निर्देश दिया कि जिस विद्यालय को पिछले साल जहां केंद्र बनाया गया था, वहां इस बार उक्त विद्यालय को केंद्र न बनाया जाए। सूत्रों के अनुसार डिबार किए गए राजकीय और अनुदानित विद्यालयों को केंद्र बनाया जाए अथवा नहीं इस पर बैठक में विचार नहीं किया गया। ज्ञातव्य हो कि गत परीक्षा से पहले शासन ने ऐसे विद्यालयों को भी केंद्र बनाने की अनुमति दे दी थी।
जहां तक पिछले साल अपनाई गई नीति का सवाल है तो उसमें स्कूल के प्रधानाचार्य को ही (यदि वे डिबार न हों) को केंद्र व्यवस्थापक की भी जिम्मेदारी दी गई थी। ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में संस्थागत बालिकाओं को ही स्वकेंद्र की सुविधा दी गई थी। राजकीय व अनुदानित विद्यालयों के लिए परीक्षार्थियों की न्यूनतम संख्या पांच सौ निर्धारित की गई थी।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_9731103.html
2013 की परीक्षाओं के लिए उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा सचिव पार्थसारथी सेन की अध्यक्षता में शनिवार को परीक्षा केंद्रों के लिए नीति बनाने के लिए बैठक हुई। इसमें शिक्षा निदेशक वासुदेव यादव और माध्यमिक शिक्षा परिषद के सचिव उपेंद्र कुमार भी मौजूद थे। सूत्रों के अनुसार अधिकारियों ने गत वर्ष अपनाई गई नीति को जारी रखने पर सहमति जताई। सचिव ने निर्देश दिया कि जिस विद्यालय को पिछले साल जहां केंद्र बनाया गया था, वहां इस बार उक्त विद्यालय को केंद्र न बनाया जाए। सूत्रों के अनुसार डिबार किए गए राजकीय और अनुदानित विद्यालयों को केंद्र बनाया जाए अथवा नहीं इस पर बैठक में विचार नहीं किया गया। ज्ञातव्य हो कि गत परीक्षा से पहले शासन ने ऐसे विद्यालयों को भी केंद्र बनाने की अनुमति दे दी थी।
जहां तक पिछले साल अपनाई गई नीति का सवाल है तो उसमें स्कूल के प्रधानाचार्य को ही (यदि वे डिबार न हों) को केंद्र व्यवस्थापक की भी जिम्मेदारी दी गई थी। ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में संस्थागत बालिकाओं को ही स्वकेंद्र की सुविधा दी गई थी। राजकीय व अनुदानित विद्यालयों के लिए परीक्षार्थियों की न्यूनतम संख्या पांच सौ निर्धारित की गई थी।
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